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भारतः ईमानदार चुनावों के लिए क्या कर रही हैं टेक कंपनियां?

२३ अप्रैल २०२४

भारत में इस साल हो रहे आम चुनाव 6 हफ्ते चलेंगे. ऐसे में टेक कंपनियों के सामने अफवाहों और दुष्प्रचार रोकने की बड़ी चुनौती है. क्या कंपनियां इस दिशा में कुछ कर रही हैं?

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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में पहली बार वोट डालने निकली महिला मतदाता
चुनाव के लिए मतदाताओं को जागरूक करने में सोशल मीडिया की भूमिका बड़ी हो सकती है लेकिन दुरुपयोग का खतरा भीतस्वीर: Idrees Mohammed/AFP/Getty Images

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने बुधवार को भारत में राजनीतिक भाषणों वालों कई ट्वीट ब्लॉक कर दिए. भारत में शुक्रवार से आम चुनाव हो रहे हैं और चुनाव के मद्देनजर ही अधिकारियों ने एक्स से ये ट्वीट हटाने का आदेश दिया था.

एक्स के मालिक इलॉन मस्क ने कहा कि वह इस आदेश से सहमत तो नहीं हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने तक ये पोस्ट भारत के लोगों को नहीं दिखेंगे. इससे पहले एक्स के अकाउंट से भी यही सूचना दी गई थी, जिसके साथ कहा गया था कि इन पोस्ट में मौजूद राजनीतिक भाषणों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए.

चुनाव अभियान में डीपफेक का हो रहा है जम कर इस्तेमाल

एक्स की हटाई सामग्री में ऐसे पोस्ट हैं, जिनमें नेता या पार्टियां अपने विरोधियों के निजी जीवन के बारे में अपुष्ट दावे कर रहे हैं. भारतीय चुनाव आयोग ने इसे आचार संहिता का उल्लंधन माना है.

भारत में इस साल हो रहे लोकसभा चुनाव19 अप्रैल से शुरू हुए जो 1 जून तक चलेंगे. एक ओर राजनीतिक पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं. वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भी खूब मेहनत करनी पड़ रही है. इसकी वजह है कि लोग गलत जानकारी से गुमराह ना हों और अफवाहों के शिकार ना बनें.

फेसबुक ने पहले से की थी तैयारी

फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा ने 3 अप्रैल को जानकारी दी थी कि भारत के आम चुनाव देखते हुए कंपनी पहले से कमर कस रही है. मेटा की सूचना में पहला वाक्य ही यही था कि इस चुनाव से पहले उन्होंने भारत में अपने थर्ड-पार्टी फैक्ट-चेकर नेटवर्क का विस्तार करने के लिए और निवेश किया है.

लंदन में फेसबुक के दफ्तर के बार प्रदर्शन करते कार्यकर्ता
फेसबुक और एक्स के प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग होने की शिकायत सरकार और विपक्षी दोनों करते हैंतस्वीर: Maja Smiejkowska/REUTERS

फेसबुक ने भारत की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, पीटीआई की फैक्ट-चेकिंग यूनिट के साथ भी समझौता किया है. वहीं जो स्वतंत्र फैक्ट-चेकर पहले से फेसबुक के साथ काम कर रहे हैं, वे भी इस सिस्टम से जुड़े रहेंगे.

फेसबुक ने यह भी बताया कि वे 'जेनएआई' जैसी नई तकनीकों के जिम्मेदार इस्तेमाल को लेकर सतर्क हैं. वे एआई डिटेक्शन को लेकर इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों के साथ साझेदारी कर रहे हैं. साथ ही, वे AI से तैयार ऐसी सामग्री पर भी निगाह बनाए हुए हैं, जो भ्रामक होती हैं और लोगों को गुमराह करती हैं.

मिलजुलकर काम कर रहीं कंपनियां

फेसबुक ने बताया कि वह 'टेक अकॉर्ड' के साथ मिलकर चुनाव में भ्रामक जानकारियां फैलने से रोकेगी. 'टेक अकॉर्ड' टेक क्षेत्र की 20 दिग्गज कंपनियों की साझेदारी है, जिसमें उन्होंने 2024 में हो रहे सभी चुनावों में एआई से बने खतरनाक और नुकसानदेह कंटेंट से निपटने की शपथ ली है.

भारत के चुनाव में डीपफेक का बढ़ता खतरा

इस साझेदारी में एडॉब, ऐमजॉन, गूगल, आईबीएम, लिंक्डइन, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, ओपेन एआई, एक्स और टिकटॉक जैसी कंपनियां हैं. इन्होंने मतदाताओं को गुमराह करने वाली सामग्री से निपटने के लिए आर्थिक और तकनीकी निवेश की बात भी कही थी.

वहीं गूगल ने भी मार्च में कहा था कि सर्च में और अपनी सहायक कंपनी यूट्यूब पर आधिकारिक चुनावी जानकारी को प्रमुखता से पेश करेगा और चुनावी विज्ञापनों को लेकर पारदर्शिता रखेगा. फेक न्यूज से निपटने के लिए गूगल ने फैक्ट-चेकर्स और एआई की मदद लेने की बात कही थी.

वॉट्सऐप की कोशिश

वॉट्सऐप लोगों के मेसेज फॉरवर्ड करने पर लगी सीमाएं बरकरार रखेगा. पिछले साल ही वॉट्सऐप नया नियम लाया था, जिसके तहत फॉरवर्ड किया जा रहा मैसेज एक बार में सिर्फ एक ग्रुप में ही भेजा सकता है. उससे पहले लोग किसी मैसेज को एक साथ पांच ग्रुप में फॉरवर्ड कर सकते थे.

इसके अलावा लोग यह भी तय कर सकते हैं कि कौन उन्हें किसी ग्रुप में जोड़ सकता है और कौन नहीं. संदिग्ध यूजरों को ब्लॉक और रिपोर्ट करने जैसे कुछ और विकल्प भी दिए गए हैं. इससे लोगों की निजता की और सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी.

प्लेटफॉर्मों की निष्ठा पर संदेह भी

2021 में समाचार एजेंसी एपी के हाथ कुछ दस्तावेज लगे थे. इनमें उन्हें पता चला कि फेसबुक, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम भारत में नफरती भाषण, गलत सूचना और भड़काऊ पोस्ट, खासकर मुस्लिमों के खिलाफ, पर अंकुश लगाने में सुविधानुसार फैसले लेते रहे हैं. जो अकाउंट गलत और नफरती कंटेंट फैला रहे थे, उनमें भी कइयों का सरकारी तंत्र से नाता है.

खुद भारत के आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव कह चुके हैं कि एआई से बनाई गई ऑडियो-वीडियो सामग्री 'लोकतंत्र के लिए खतरा' है. वहीं चुनाव को ध्यान में रखते हुए भारत की कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने प्रचार में एआई की मदद ले रही हैं.

क्या चाहते हैं पहली बार वोट डालने वाले

अमेरिका में भी उठी थी आवाज

पिछले महीने ही अमेरिकी सांसद माइकल बेनेट ने भी अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों से पूछा था कि भारत समेत कई देशों में होने जा रहे आम चुनावों को देखते हुए उन्होंने क्या तैयारियां की हैं.

बेनेट ने कहा था, "आपके प्लेटफॉर्म चुनावों के लिए जो चुनौतियां पेश करते हैं, वे नई नहीं हैं. लोग डीपफेक और फर्जी सामग्री शेयर करते थे, लेकिन अब एआई से तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और राजनीतिक स्थिरता पर ही खतरा पैदा हो गया है. एआई से तो कोई भी बेहद खतरनाक फोटो, वीडियो या ऑडियो बना सकता है, जो नकली हो सकता है."

2024 में दुनिया के 70 देशों में चुनाव हैं, जिनमें दो अरब से ज्यादा लोग मतदान करेंगे. इसीलिए 2024 को 'लोकतंत्र का साल' कहा जा रहा है. चुनाव वाले देशों की लिस्ट में भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, क्रोएशिया, यूरोपीय संघ, फिनलैंड, घाना, आइसलैंड, लिथुआनिया, नामीबिया, मेक्सिको, मोल्दोवा, रोमानिया, मंगोलिया, दक्षिण अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश हैं.

वीएस/एनआर (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)